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Wednesday, October 1, 2008

गरीब

बाबा क्यों बैठे हो उदास और हताश
दुनिया से या ज़िन्दगी से हो निराश
किसी से नही मै मौसम से हूँ बेजार
निगोड़े की वजह से ज़िन्दगी हो गई तार तार
जब चाहिए पानी बरसता ही नही
बरसता है तो फ़िर रुकता ही नही
सूखे और बाढ़ के कहर से
टूटी है कमर कुछ इस कदर
रस्सी बेचने निकला हूँ इधर
सुबह से हो गई शाम
बोहनी तक तो हुई नही
नायलोन के आगे
सन की रस्सी कोई खरीदता ही नही
बाबा दर्द तुम्हारा जानती हूँ
पर एक खुशी की बात बताती हूँ
हमने चंद्र यान भिजा है चाँद पे
भारत सब को बता रहा है शान से
चलो बढ़िया है
मुला इस से होगा क्या
क्या समय से पानी बरसेगा
भूख से कोई न तरसेगा
क्या हमरे बिटवा की होसकेगी पढ़ाई
बिटिया हमरी जायेगी ब्याही
बाबू की खासी को मिल सकेगा आराम
सब हाथों को मिल सकेगा काम
हमरी धन्नो की का होसकेगी दवाई
अम्मा को का देने लगेगा दिखाई
चुका पाएंगे क्या हम महाजन का क़र्ज़
कुकुर और हम में नही है कौनो फर्क
मेरे पास इन बातों का न था कोई जवाब
करा के उस की बोहनी
उठ गई वहां से चुप चाप