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Monday, September 28, 2009

विस्फोट

दर्द चीखा
लहू बहा
शहर काँपा
दुनिया के नक्शे पे
भारत थरथराया
राम हुआ शर्मिंदा
रहीम ने सर झुकाया



2.

लाशों की भीड़ में
खड़ी
माँ भारती रो रही
चिता जलाऊँ किस के लिए
बनाऊँ कब्र किसकी
मानव मानवता
धर्म धार्मिकता
देश देशभक्ति
है कौन यहाँ
हुई हो न मौत जिसकी


शरद ऋतू

ग्रीष्म में तपते
साये ,जलते मन
सुलगती हवाएं
शरद ऋतू के आगमन पे
हर्षित हो जायें
गुलाबी ठण्ड की
आहट लिए
प्रकृति का करता सिंगार
शरद ऋतू की सुषमा
है शब्दों से पार
श्वेत नील अम्बर तले
नव कोपलें फूटती है
कमल कुमुदनियों
की जुगल बंदी से
मधुर रागनी छिड़ती है
भास्कर की मध्यम तपिश
सुधा बरसाती चांदनी
धरती के कण कण में
प्रेम रस छलकाती है
मौसम की ये अंगडाई
विरह प्रेमियों के ह्रदय में
टीस सी उठाती है

1 comment:

Jayant said...

Bahut saari laashen hain... kis kis ke liye roiye!!!

Adbhut kavitaa likhi hai aapne!!