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Sunday, October 4, 2009

प्यार को जो देख पाते

भैया
काश तुम समझ पाते
पापा की झिड़कियों मे था
तुम्हारा ही भला
उनके गुस्से मे छुपे
प्यार को जो देख पाते
तो शायद
तुम घर छोड़ के नही जाते
पापा के ठहाकों से
जो गूंजता था घर कभी
आज उनकी
बोली को तरस जाता है
तुम्हारे कमरे मे
बैठे न जाने क्या
देखते रहते हैं
अकेले मे कई बार
बाते करते हैं
पापा अब बुझ से गए हैं
उनकी डाट को
गांठ बाँध लिया
पर न देखा की
तुम्हारी सफलता को
मेरे बेटे ने किया है
बेटे को मिला है
कह के
सब को कई बार बताते थे
तुम्हारे सोने के बाद
तुम्हें कई बार
झाक आते थे
क्यों नही
देखा तुम ने
के खीर पापा कभी
पूरी कटोरी नही खाते थे
तुम्हारी पसंद के
फल लाने
कितनी दूर जाते थे
आपने वेतन पे लिया कर्ज
तुम्हारी मोटर साईकिल लाने को
काम के बाद भी किया काम
तुम्हें मुझे ऊँची शिक्षा दिलाने को
तुमने उन्हें दिया
मधुमेह ,उच्च रक्तचाप ,
छुप के रोती
आंखों को मोतिया
लेली उनकी मुस्कान
उनकी बातें
उनका गर्व से उठा सर
और सम्मान
यदि तुम ये सब जानते
तो शायद नही जाते
आजो
इस से पहले
के कंही देर न हो जाए
पितृ दिवस पे तो पिता को
बेटे का उपहार दे जाओ
तुम आजो