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Saturday, February 12, 2011

ठण्ड की सिमटी रातों में शब्दों को विस्तार मिलता है और वो भावनाओं के पख लगा उड़ने लगते हैं उन्हीको पकड़कर कविता में ढाल दिया है-
1.
चाहत की गर्मी से
पिघले थे अरमान
और धुंआ
खोहरा बन छा गया था
उसकी कालिख
दिल के दीवारों पर
आज भी दस्तक देती है
2.
हफ्ते भर
घर में बंद रहने के बाद
सूरज ने खिड़की खोली
ठण्ड में  सिकुड़ी एक किरण
पड़ी जो बर्फ पर
स्वयं उसकी आँख चुंधिया गई
वो ढुंढने लगा
एक टुकड़ा बादल
 3.
ठंढा सफ़ेद हवा का झोका
मेरी हड्डियों को
गुदगुदा गया
सुनाई दी एक आवाज तभी
बेटा स्वेटर पहन लो
लग जाएगी ठण्ड
औए मैने जैकेट उठा ली
4.
सर्द कोहरे को ओढ
ठिठुरता  गुलाब
ढूंढ़ रहा था
अपनी महक ,
अलसाई पंखुड़ियों में शबनम
और अपना वजूद
तभी क्रूर हाथों ने
उसे डाली से अलग कर
खोज को विराम देदिया
4.
धुन्ध को ओढ़ मै
कई दिनों से
ढूंढ़ रही थी सूरज को
आकाश के किनारे
एक कराह सुनी
देखा तो सूरज घायल पड़ा था
पूछने पर बोला
तानो और गलियों से ज़ख़्मी हूँ
जो लोगों ने
गर्म मौसम मे दिए थे मुझे
5.
पिछली सर्दी मे
हथेली  की गर्मी
तुम्हारी चौखट पर छोड़ आई थी
आज दस्तानो मे भी
हाथ गर्म नहीं होते
6.
तुम्हारी यादों की सिहरन
जो मुझमे उतरी
ओस मे डूबे गुलाब
तुम्हारे सपनो पर रख आई
उनकी खुशबु से
आज भी मेरी हथेलियाँ महक जाती है
 7.
हमारे रिश्ते की म्रत्यु पर
भिजवाये थे तुमने
कुछ बर्फ के फूल
उन्ही फूलो की कब्र पर
आज धुन्ध  ने पैहरे बैठाएं हैं