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Saturday, June 9, 2012

भारत गई थी अतः बहुत दिनों से आप सभी से दूर रही आज माँ गंगा पर लिखी कुछ क्षणिकाएं आप सभी के सामने प्रस्तुत हैं .गंगा एक नदी ही  नहीं ,एक माँ है ,एक विश्वाश है ,एक आस्था है l

क्षणिकाएं
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ना गंगोत्री
ना गोमुख
अब मेरा पता
वृद्धआश्रम
-0-
अब दिखते  नहीं
बस्तियों के प्रतिबिम्ब मुझमे
जल का दर्पण
मैला जो हुआ
-०-
जलने लगी हैं
अब आँखें मेरी
शायद
चुभी है इनमे
तुम्हारे पापों  की किरचें
-०-
अपनी लहरों के जख्म
सीते हुए
साँझ हुई
पर ज़ख्म है की
भरता ही नहीं
-०-
उठ रहा है
मेरे तट से  धुवाँ
आज फिर
किसी घर में
मातम हुआ होगा