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Thursday, October 4, 2012

रचना बहन ने पूछा "सब ठीक है न "? कुछ ठीक है कुछ नहीं है .............बहन बहुत अच्छा लगा की अपने पूछा .कभी कभी किसी दुसरे का दुःख भी अपना ही लगने लगता है कुछ ऐसा ही हुआ मेरे साथ बस उसी दर्द में मेरे कुछ शब्द बह चले और ये कविता बनी 


एक बेल 
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एक बेल
जो सहारे की तलाश में निकली
तुमसे  लिपटी
और तुम्हारी होके रह गई
तुम्हारी पीठ पर
 उतारे उसने
बहारों के कई रंग 
हथेलियों  में खिलाये गुलाब
उसने 
उतनी ही धूप ली
जितनी  तुमने दी l
हवा की टहनी पर
उतना ही झूली 
जितना तुमने चाहा
धरा के उस छोटे टुकड़े को
घर कहती रही
जिस पर तुमने  इशारा किया
एक रोज अचानक
 गिरने लगी
कट कट के वो
पीले पड़े
अपने पत्तों को समेटती
मुरझाये फूलों की
पंखुडियां उठती
अपनी  ही लाश पर
बहुत देर रोती
घूल में समां गई 
उस रोज  तुमने उससे कहा था
"और कितनो के लिए
बहीं है ऐसे ही
भावनाए  तुम्हारी "